गिरीश थापर, बंटी राठौर, कैलाश कौशिक को ‘द प्राइड ऑफ द सिटी’ अवार्ड
- त्रिनाथ मिश्र, ई रेडियो
मेरठ। ऐतिहासिक दृष्टि से मेरठ को पूरे विश्व में एक अलग मुकाम हासिल है और इसी के चलते मेरठ का अलग अंदाज हमारे जेहन में रचा बसा है।
समाचार बन्धु पत्रकार वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष दिनेश चंद्रा, अखिल भारतीय संयुक्त व्यापार मण्डल के राष्ट्रीय अध्यक्ष दीपक राज शर्मा, स्काईवर्ड की निदेशक अदिती चंद्रा, पूजा रावत ने आयोजित किया कार्यक्रम
इसी अंदाज को बालीवुड में बखूबी निभाने वाले कुछ ऐसे लोगों से आज आपको मिलवाने जा रहे हैं जो वर्तमान में एक कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं लेकिन आपसे मिलेंगे तो ऐसा लगेगा कि जैसे ये वही पुराने लोग हैं जो मेरठ की माटी में कभी नंगे पैर खेलते मिल जाया करते थे। मौका था समाचार बंधु पत्रकार वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा आयोजित ‘द प्राइड ऑफ द सिटी अवार्ड’ का…
इस दौरान व्यक्तित्व में सादगी और कामयाबी की एक कहानी गढ़ चुके फिल्म लेखक बंटी राठौर, टीवी अभिनेता गिरीश थापर और कैलाश कौशिक….से ई रेडियो ने की दिल की बात….
इस दौरान बालीवुड में ही समीताभ, एक पहेली लीला, पोस्टर ब्वाय, सुपर नानी जैसी फिल्मों एवं सावधान इंडिया, सावित्री, सीआईडी जैसे अनेकों सीरियलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मेरठ के दबंग गिरीश थापर ने क्या कहा जरा गौर फरमाएं….
धमाल, जुगाड़, आल द बेस्ट फन बिगेंस, गोलमाल-3, मस्ती एक्सप्रेस, जिंदगी 50-50, द एक्सपोज, पोस्टर ब्वॉयज जैसी फिल्मों को अपनी लेखनी से सजाने वाले बंटी को मेरठ का नाम रौशन करने के लिए ढेरों बधाई……

बंटी सपना कोरियोग्राफर बनने का था। लेकिन संयोग से वह राइटर बन गए।
आठ भाई, बहनों में सातवें नंबर के बंटी की पढ़ाई में ज्यादा रुचि नहीं थी। उनके पिता अमर सिंह बीएसएनएल में इंजीनियर थे। बंटी की पांच बहनें और दो भाई सरकारी विभाग में अच्छी पोस्ट पर हैं। पिता को बंटी के भविष्य की हमेशा चिंता रहती थी। बंटी ने मेरठ कॉलेज से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। उसके बाद मुंबई जाने का फैसला लिया।
उनका सपना एक अच्छा कोरियोग्राफर बनने का था। 2001 में वह किस्मत आजमाने मुंबई चले गए। बॉलीवुड में अधिक प्रतिस्पर्धा के चलते वो कोरियोग्राफर तो नहीं बन पाए। लेकिन सात सालों तक संघर्ष करते हुए बंटी को फिल्म में राइटर बनने का मौका मिला। फिल्म लेखक अनुराग से दोस्ती हुई तो उन्होंने बंटी का हौसला बढ़ाया। यहीं से उनके जीवन में फिल्म लेखक बनने की इच्छा पैदा हुई। 2007 में उन्होंने फिल्म धमाल के लिए डॉयलाग लिखे। फिल्म हिट रही और संवाद भी दर्शकों को पसंद आए। इसके बाद बंटी ने लगातार कई बड़ी फिल्मों में संवाद दिए। गोलमाल-3, खिलाड़ी 786 और पोस्टर ब्वॉयज फिल्म को दर्शकों की काफी सराहना मिली।
संघर्ष में बीता जीवन
बंटी ने अपने जीवन में बहुत कठिनाइयों का सामना किया। उन्होंने बताया पिता की इच्छा के खिलाफ जाते हुए उन्होंने जिंदगी में कुछ अलग करने की सोची। यही कारण था कि बंटी ने सरकारी नौकरी न चुनकर संघर्षपूर्ण जिंदगी का रुख किया। जिसमें उन्हें थोड़ी देर से ही सही पर मंजिल मिली। एक समय था जब खाने तक के पैसे को लेकर उन्हें जद्दोजहद करते थे। लेखक बनकर वो मुंबई में एक अलग पहचान बना चुके हैं।