ये नौ महीने और 2019 का खास आम-चुनाव | #mission2019 special election


संतराम पाण्डे, वरिष्ठ पत्रकार
2019 का आम चुनाव अब खास हो चला है। यह २०१४ से ज्यादा वीवीआईपी हो गया है। पैदल हो चुके देश के विपक्षी दल हर हाल में इस चुनाव में भाजपा को पैदल करने की जुगत में जुटे हैं। विपक्ष के लिए लगता है कि यह चुनाव जीवन मरण जैसा हो गया है। विगत में हुए उपचुनावों में उसे संजीवनी की ऊर्जा मिल गई है, सो वह पूरी तरह एटामिक ऊर्जा से लैस जैसे हो गए हैं।
देश में लोक सभा चुनाव की ड्यू डेट अप्रेल-मई 2019 है। यूं तो संविधान में ऐसी भी व्यवस्था है कि चुनाव ड्यू डेट से छह महीने पहले भी कराए जा सकते हैं। ड्यू डेट की बात की जाए तो चुनाव में लगभग नौ-दस महीने का वक्त है। ये नौ-दस महीने राजनीतिक दलों के लिए प्रसव पीड़ा जैसे हैं। क्या होगा चुनाव में कोई नहीं बता सकता। विपक्ष पूरी तरह से जुटा हुआ है कि इस बार भाजपा की सरकार न बनने पाए, वह उसे पैदल करने की जुगत में लगे हैं। लेकिन राजनीतिक दलों के चाहने से कुछ नहीं होने वाला। होगा वही जो देश की जनता चाहेगी। अभी हाल ही में मीडिया रिपोर्टों के हवाले से कहा जा रहा था कि विपक्ष अभी गठबंधन और महागठबंधन के गीत गा रहा है और भाजपा ने चुनाव की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। भाजपा की तैयारियों की बात करें तो राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का राजग घटक दलों को साधने का अभियान चल रहा है और पार्टी की राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक संगठन के महारथियों, सांसदों, विधायकों को अपना-अपना क्षेत्र साधने के लिए मैदान में उतार दिया गया है। पार्टी के नेता संपर्क अभियान में जुटे हुए हैं। पार्टी के कार्य जन-जन तक पहुंचें, यह प्रथम उद्देश्य है। इसका कितना प्रभाव पड़ेगा, यह तो वक्त बताएगा।

यदि २०१९ में पार्टी के परंपरागत वोटर ने मतदान बूथ से दूरी बनाई तो भाजपा के लिए कठिन होगा जैसा कि उपचुनावों में देखा जा चुका है। अभी हालत यह है कि भाजपा के कार्यकत्र्ताओं को नौकरशाही गंभीरता से नहीं ले रही है। यदि इसमें सुधार न हुआ तो पार्टी का सपना धरा रह जाएगा। हालांकि अभी चुनाव में जो वक्त है, उसमें पार्टी और प्रधानमंत्री को साधनहीन मानना भूल होगी।
बात तैयारियों की चल रही है तो यह कहना समीचीन होगा कि पार्टी स्तर पर कार्यकर्ताओं में यह चर्चा भी सुनी गई कि भाजपा ने अपने वोट बैंक की परवाह नहीं की। वैश्य भाजपा के परंपरागत समर्थक माने जाते हैं लेकिन यह वर्ग मान बैठा है कि नोटबंदी ने इस वर्ग को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। उद्यमियों, कारोबारियों और व्यापारियों की बात करें तो उपचुनावों में महसूस किया गया कि यह वर्ग मतदान बूथ से दूर रहा जिसके कारण उपचुनावों में नुकसान भी उठाना पड़ा। अति आत्मविश्वास भी पार्टी के लिए घातक बना। उद्यमियों, कारोबारियों और व्यापारियों में नौकरशाही को लेकर भारी शिकायतें हैं। नौकरशाही उनकी एक नहीं सुन रही और पार्टी कार्यकत्र्ता निराश हो रहे हैं। यह सच इसलिए माना जा रहा है क्यों कि अभी हाल ही में मुरादाबाद में हुई क्षेत्रीय संगठन की बैठक में कार्यकत्र्ताओं ने मंत्रियों तथा वरिष्ठ नेताओं की इसकी शिकायत भी की और इसीलिए नौकरशाही को साधने तथा कार्यकत्र्ताओं में उत्साह भरने की गरज से समन्वय समिति बनाए जाने की बात कही गई है।
परंपरागत वोटरों को साधना होगा भाजपा के लिए रामबाण
आगामी चुनावों के संदर्भ में बात करें तो यह आवश्यक है कि भाजपा को अपने परंपरागत वोटर को साधना जरूरी भी है। यदि २०१९ में पार्टी के परंपरागत वोटर ने मतदान बूथ से दूरी बनाई तो भाजपा के लिए कठिन होगा जैसा कि उपचुनावों में देखा जा चुका है। अभी हालत यह है कि भाजपा के कार्यकत्र्ताओं को नौकरशाही गंभीरता से नहीं ले रही है। यदि इसमें सुधार न हुआ तो पार्टी का सपना धरा रह जाएगा। हालांकि अभी चुनाव में जो वक्त है, उसमें पार्टी और प्रधानमंत्री को साधनहीन मानना भूल होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस तरह लोकप्रिय हैं और उनके करिश्में के आगे विपक्ष ने हमेशा मुंह की खाई है तो इस बार फिर कार्यकत्र्ताओं को उसी तरह के करिश्में की उम्मीद है लेकिन पार्टी कार्यकत्र्ताओं में घर कर रही निराशा को छांटने के लिए पार्टी का आलाकमान क्या करने वाला है, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।
विपक्षियों की भूमिका अभी भी संदेह के घेरे में
अब विपक्ष की रणनीति अभी ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी है। विपक्ष में अभी बयानों के तीर चल रहे हैं। धरातल पर ज्यादा कुछ नहीं है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी का एक बयान मीडिया में आया है जिसमें कहा गया है कि विपक्ष अभी प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर मगजमारी नहीं करेगा। सभी दल चुनाव लडेंगे और परिणाम आने के बाद शाम को ही ‘डेटÓ पर जाने के लिए गलबहियां कर लेंगे। सीताराम येचुरी ने दावा किया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद की परिस्थितियों के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनेगा, इसलिए विपक्ष को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है। येचुरी ने यह भी कहा है कि आगामी आम चुनाव में क्षेत्रीय दलों की बड़ी भूमिका होगी और ये दल गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। हालांकि चुनाव परिणाम आने के बाद सभी दलों को एक मंच पर आना होगा और यहीं महागठबंधन का कारक बनेगा। उन्होंने कहा है कि जहां तक विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का मामला है, इसकी अभी कोई जरूरत नहीं है। यदि यह बात अभी उठ भी गई तो सभी राजनीतिक दल इससे बचना चाहेंगे। क्योंकि विपक्ष मकें प्रधानमंत्री पद के ढेर सारे दावेदार हैं लेकिन अंतत: अंकों के गणित पर सभी को समझौता करना ही पड़ेगा।
महागठबंधन की मगजमारी पर टिप्पणी से बच रहे विपक्षी
पिछले दिनों 2019 में प्रधानमंत्री बनने की मंशा जाहिर करने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से जब महागठबंधन का नेतृत्व करने को लेकर सवाल किया गया तो वह भी इस सवाल को टाल गए। जाहिर है, अभी इस पर मगजमारी करने से सभी दल बच रहे हैं। मुंबई में अपनी कुल ढाई मिनट की प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने महागठबंधन को जनता की इच्छा बताया लेकिन जनता की इस इच्छा का कौन कितना सम्मान करेगा, इस पर भी कोई सोचने को तैयार नहीं है।
अभी विपक्ष में जो खिचड़ी पक रही है, वह कैसी होगी? उसका स्वाद कैसा होगा, सब कल्पना लोक में है लेकिन आगामी नौ-दस महीनों में कुछ भी हो सकता है, इसलिए फिलहाल अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी लेकिन कुछ भी करने के लिए सभी राजनीतिक दल अपने-अपने खेमे में तलवारें भंज रहे हैं।